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यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता

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लोकोक्तियों पर आधारित मेरी पहली 'लोक उक्ति में कविता' संग्रह के उपरान्त यह मेरा दूसरा काव्य संग्रह है। इस संग्रह में मैंने बिना किसी भाषाई जादूगरी और उच्चकोटि की साहित्यिक कलाबाजी के स्थान पर दैनिक जीवन की आम बोलचाल की भाषा-शैली को प्राथमिकता दी है। संग्रह में कई विषय व विधा की कविताएं संग्रहित हैं। संग्रह में एक ओर जहाँ आपको कुछ कविताओं में आज के सामाजिक, राजनैतिक परिदृष्य में अपने हक के लिए आवाज उठाने की गूँज सुनाई देगी, वहीँ दूसरी ओर कुछ विशिष्ट प्रतिमान लिए, कुछ प्रेम और कुछ देश-प्रेम की कविताओं के साथ कुछ पारिवारिक स्नेह बंधन के प्रतिरूप स्वरूप खास कविताएं भी.पढ़ने को मिलेंगी। संग्रह में एकरसता का आभास न हो इसलिए मैंने इसमें हर स्वाद की कविताओं को परोसा है।
निष्कर्ष रूप से यह पुस्‍तक आम आदमी और अपने सुख-दुःख, संवेदनाओं व सामाजिक विषमताओं के बीच मन में उमड़ी गहन संवेदना और उससे दिल में उमड़ते-घुमड़ते खट्टे-मीठे अनुभवों व विचारों का संग्रह है, जिसे अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक नित्य नैमित कर्म समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस तक पहुंचाने का यह मेरा एक प्रयास है। -shabd.in

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